आर्थिक सर्वे का सार

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आर्थिक सर्वेक्षण

  • अगले वर्ष (2016-17) तो सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर में कोई भारी उछाल नहीं आएगा| वैसे कठिन अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों के बीच 2016-17 में अनुमानित 7-7.5 फीसदी विकास दर भी कम नहीं है। 
  • राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 3.9 प्रतिशत तक सीमित रखना संभव हुआ है, चालू खाते का घाटा काबू में है और मुद्रास्फीति निम्न स्तर पर बनी हुई है। 
  • परोक्ष करों के संग्रह में खासी बढ़ोतरी हुई है, पूंजीगत खर्च में छह साल की सबसे अधिक बढ़ोतरी दर्ज हुई
  • सबसिडी में भारी गिरावट आई है। 

मगर इसका यह अर्थ नहीं समझा जाना चाहिए कि भारत तमाम आर्थिक चुनौतियों से उबर गया है।

सरकार ने माना है कि आर्थिक विकास को निरंतरता देने के लिए उसे कई ठोस कदम उठाने होंगे। 

  1. इनमें एक टैक्स-जीडीपी अनुपात को बढ़ाना है। –  भारत के जीडीपी में टैक्स का अनुपात 16.6 प्रतिशत है, जो उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों (21 फीसदी) और विकसित देशों (34 फीसदी) से काफी कम है। भारत की सिर्फ 5.4 प्रतिशत आबादी प्रत्यक्ष करों के दायरे में है।
  2. दूसरा शिक्षा एवं स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ना है। – सर्वेक्षण के मुताबिक भारत अपने जीडीपी का 3.4 फीसदी हिस्सा ही स्वास्थ्य और शिक्षा पर खर्च करता है, जो विकसित एवं उभरते देशों की तुलना में बहुत कम है। 
  3. एक बड़ी फौरी चुनौती सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने से आएगी। संभवत: इसी कारण आर्थिक सर्वेक्षण में राजकोषीय रणनीति की मध्यकालिक (मिड-टर्म) समीक्षा की जरूरत बताई गई है।
  4. इसके अलावा सरकारी बैंकों का डूबता कर्ज और कॉरपोरेट घरानों के मुनाफे में कमी भी चिंता के खास कारण हैं।
  5. विश्व अर्थव्यवस्था में जारी उथल-पुथल के चलते पेश आ रही चुनौतियां हैं

आर्थिक स्थति

घटती तेल कीमत

  • घटती तेल कीमतों के चलते हमारा भुगतान शेष घाटा जो 2012-13 में जीडीपी के लगभग पांच प्रतिशत तक पहुंच चुका था, 2015-16 में जीडीपी के लगभग 1.4 प्रतिशत तक तो पहुंचा ही है, 
  • साथ ही साथ 2014-15 की तुलना में 341.6 अरब डॉलर की अपेक्षा जनवरी 2016 तक हमारे विदेशी मुद्रा भंडार 349.6 अरब डॉलर तक पहुंच गए हैं। 

महंगाई

  • उधर महंगाई के मोर्चे पर भी अनुकूलता है, क्योंकि थोक महंगाई में वृद्धि दर तो लगातार शून्य से नीचे चल रही है और उपभोक्ता महंगाई की दर 4-5 प्रतिशत के आसपास है।
  • गौरतलब है कि दो साल पहले तक यह दो अंकों में पहुंच गई थी। 

शिक्षा, स्वास्थ्य एवं कृषि

  • कुछ खास बातें जो आर्थिक स्थिति में खुशनुमा माहौल बना रही हैं वे हैं शिक्षा, स्वास्थ्य एवं कृषि और ग्रामीण विकास पर बढ़ता हुआ खर्च।
  • पिछले सालों में जो यह खर्च स्थिर सा हो गया था, उसमें इन मदों पर क्रमश: 4.7 प्रतिशत, 9.0 प्रतिशत और 8.1 प्रतिशत खर्च बढा है।
  • सरकार द्वारा बागवानी क्षेत्र पर यादा ध्यान देने के कारण उसमें उेखनीय प्रगति से किसानों की आमदनी बढ़ने के नए अवसर मिल रहे हैं।
  • बागवानी उत्पादन 282.5 मिलियन टन पहुंच रहा है, जो खाद्यान्न उत्पादन से भी यादा है। 

सेवा क्षेत्र & निवेश

  • सेवा क्षेत्र में भी नौ प्रतिशत से यादा संवृद्धि दर अर्थव्यवस्था में गति का आभास दे रही है। 
  • आर्थिक सर्वेक्षण में साफ-साफ आया है कि पिछले सालों में सरकार ने जो मुक्त व्यापार समझौते दूसरे मुल्कों या देशों के समूहों से किए हैं उसके कारण उन देशों को निर्यात की अपेक्षा उन देशों से आयात खासा बढ़ा है। 
  • जिसके कारण व्यापार घाटा बढ़ा और रुपये का मूल्य घटा। ‘आसियान’ देशों के साथ हुए समझौते के कारण वहां से आयात में 79 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि निर्यात मात्र 33 प्रतिशत बढ़े। 
  • देश में निवेश बढ़ाने के नाम पर विदेशी निवेश नीति का असर यह हो रहा है कि विदेशी कंपनियों द्वारा न केवल रॉयल्टी, ब्याज, लाभ, वेतन आदि के नाम पर भारी मात्र में विदेशी मुद्रा बाहर जा रही है बल्कि इन कंपनियों द्वारा भारी मात्र में आयात करने के कारण व्यापार घाटा भी बढ़ता है। 

सब्सिडी & असमानताएं

  • आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि यूरिया सब्सिडी का 65 प्रतिशत हिस्सा बीच में ही गायब हो जाता है। ऐसे में सरकार यदि किसान को सीधे सब्सिडी दे तो यह लीकेज खत्म हो सकती है। 
  • सरकार को इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि भूमंडलीकरण के बाद असमानताएं बढ़ी हैं। जहां 1998 में ऊपर के एक प्रतिशत लोगांे की आमदनी कुल आमदनी का नौ प्रतिशत होती थी, 2012 में वह 12.9 प्रतिशत हो गई है। 
  • करों में रियायतों का लाभ अत्यंत धनाढ्य लोगों को ही मिलता है। 
  • इसके लिए सब्सिडी नीति में बदलाव हो और यादा से यादा सब्सिडी सीधे लाभार्थियों के खाते में पहुंचे

सिफ़ारिशें

  • चीन में आए आर्थिक संकट का लाभ उठाने के लिए देश में निवेश के वातावरण को बेहतर बनाने की जरूरत है, यह सब जानते है लेकिन यह वातावरण विदेशियों के लिए नहीं, भारत के युवा उद्यमियों के लिए होना चाहिए। 
  • ब्याज दरों को घटाने की जरूरत है ताकि देश में निवेश को बढ़ावा मिले। 
  • कृषि को वर्षा पर निर्भरता से भी मुक्त करने की जरूरत है और इसके लिए सिंचाई की सुविधाओं पर खर्च भी बढ़ाना होगा। 
  • आज देश का आम आदमी स्वास्थ्य सुविधाओं की महंगाई से ग्रस्त है| देश में अभावों की बढोतरी में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी एक बड़ा कारण है। सरकार को इस दिशा में कदम उठाने होंगे।
  • कंपनियां दवाइयों की कीमतें न बढ़ा पाए यह तो करना ही होगा, साथ ही स्वास्थ्य पर खर्च को बढ़ाकर सरकारी अस्पतालों का जीर्णोद्धार भी करना होगा। ऐसा करने से ही हम वास्तविक लाभ ले पाएंगे।

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