नीति आयोग के गठन का औचित्य
- ‘नीति पंगुता’ (policy paralysis) और नीति क्रियान्वयन में विंलब का कारण माना गया है।
- योजना आयोग को मुख्यतया एक परामर्शकारी संस्था के रूप में गठित किया गया था जिसका काम देश के संसाधनों का बेहतर ढंग से आंकलन करते हुए योजना का निर्माण था
- लेकिन कालांतर में यह सर्वाधिक महत्व की संस्था बनकर उभरी और इसने राज्यों को वित्तीय अनुदान देने तक के कार्य को अपने अधिकार क्षेत्र में शामिल किया।
- योजना आयोग पर यह आरोप लगाया गया कि इसके द्वारा दिये जाने वाले अनुदान के संदर्भ में निष्पक्षता नहीं बरती जाती।
- गठबंधन राजनीतिक संस्कृति के दौर में तो सत्ताधरी दल के सहयोगी दल से संबंधित राज्यों को अधिक अनुदान देने के आरोप लगाये गये।
- राजनीतिक विश्लेषक अशोक चंदा का मत है कि योजना आयोग ने संघवाद को निरस्त कर दिया है। कुछ अन्य लोगों ने इसे ‘सुपर केबिनेट’ कहा है।
समय के साथ बदलाव की जरूरत
- चौथी पंचवर्षीय योजना तक देश के आर्थिक संवृद्धि की दर उतनी नहीं रही जितनी अपेक्षा की गयी थी।
- बैरोजगारी, निर्धनता, कुपोषण पर भी प्रभावी नियंत्रण नहीं लगाया जा सका
- सामाजिक न्याय, मानव विकास, मानव संसाधन व पूंजी का विकास, प्राथमिक शिक्षा व स्वास्थ्य के सार्वभौमीकरण की दिशा में विकास अपेक्षा से कम
- नये मुद्दे : आज जनांकिकीय लाभांश, कुशल श्रम बल, बेहतर सामाजिक सुरक्षा प्रणाली, धारणीय आर्थिक विकास, ज्ञान समाज व ज्ञान अर्थव्यवस्था का निर्माण जैसे मुद्दे काफी प्रभावी हो गये हैं
इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर योजना आयोग के स्थान पर नीति आयोग के गठन को औचित्यपूर्ण ठहराया गया है। एक रुपांतरणकारी भारत (Transforming India) के विविध जरूरतों को पूरा करने की दृष्टि से नियोजन व नीति संबंधी दुर्बलताओं को दूर करने की तत्काल आवश्यकता है।
नीति आयोग द्वारा पूरे किये जाने वाले उद्देश्य
- ‘राष्ट्रीय भारत परिवर्तन संस्थान’ (नीति आयोग) भारत की विकास प्रक्रिया में निर्देश और रणनीतिक परामर्श देगा।
- विकेन्द्रीकरण, भागीदारी, सांझेदारी, सहयोग समन्वय के भावों के साथ शासन प्रणाली को संचालित करने के लिए नीति आयोग के बैनर तले कार्य किया जायेगा।
- केन्द्र से राज्यों की तरफ चलने वाले एकपक्षीय नीतिगत क्रम को एक महत्वपूर्ण विकासवादी परिवर्तन के रूप में राज्यों की वास्तविक और सतत भागीदारी से बदल दिया जायेगा।
- नीति आयोग द्वारा राज्यों के साथ सतत आधार पर संरचनात्मक सहयोग की पहल और तंत्र के माध्यम से सहयोगी संघवाद (cooperative federalism) को बढ़ावा दिया जायेगा।
- नीति आयोग राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों, प्रैक्टिशनरों तथा अन्य हितधारकों के सहयोगात्मक समुदाय के जरिये ज्ञान, नवाचार, उद्यमशीलता सहायक प्रणाली बनाएगा। आयोग निम्नांकित उद्देश्यों की पूर्ति करेगा
अन्य पहलू
- शासन में जटिलता और परेशानियों की संभावनाओं को कम करने के लिए प्रौद्योगिकी का प्रयोग किया जायेगा।
- आधुनिक प्रौद्यागिकी के इस्तेमाल से संपूर्ण और सुरक्षित आवास सुविधा के लिए ‘अवसर के रूप में शहरीकरण’ का इस्तेमाल किया जायेगा।
- प्रवासी भारतीय समुदाय की भौगोलिक-आर्थिक और भौगोलिक-राजनीतिक ताकत को शामिल किया जायेगा।
- उद्यमशीलता, वैज्ञानिक और बौद्धिक मानव पूंजी के भारत के भंडार का लाभ उठाया जायेगा।
- आर्थिक रूप में ‘जीवंत मध्यवर्ग की भागीदारी’ बनाये रखने के लिए इसकी क्षमता का पूर्ण दोहन सुनिश्चित किया जायेगा।
- भारत समान विचार वाले वैश्विक मुद्दों, खासकर जिन क्षेत्रों पर अपेक्षाकृत कम ध्यान दिया गया है, पर बहसों और विचार-विमर्शों में एक सक्रिय भूमिका अदा करेगा।
- खाद्य सुरक्षा से आगे बढ़कर कृषि उत्पादन के मिश्रण तथा किसानों को उनकी उपज से मिलने वाले वास्तविक लाभ पर ध्यान केन्द्रित किया जायेगा।
- नीति आयोग इस दृष्टिकोण के साथ कार्य करेगा कि नये भारत को एक प्रशासनिक बदलाव की जरूरत है, जिसमें सरकार एक ‘सक्षमकारी’ (facilitator) होगी न कि पहला और आखिरी सहारा।
नीति आयोग की संरचना
- भारत के प्रधानमंत्रीः अध्यक्ष
- गवर्निंग कांउसिल में राज्यों के मुख्यमंत्री और केन्द्र शासित प्रदेशों के उपराज्यपाल शामिल होगें।
- विशिष्ट मुद्दों और ऐसे आकस्मिक मामलें, जिनका संबंध एक से अधिक राज्य या क्षेत्र से हो, को देखने के लिए ‘क्षेत्रीय परिषद’ गठित की जायेगी। ये परिषदें विशिष्टि कार्यकाल के लिए बनाई जायेगी।
- भारत के प्रधानमंत्री के निर्देश पर क्षेत्रीय परिषदों की बैठक होगी और इनमें संबंधित क्षेत्र के राज्यों के मुख्यमंत्री और केन्द्र शासित प्रदेशों के उपराज्यपाल शामिल होंगे। (इनकी अध्यक्षता नीति आयोग के उपाध्यक्ष करेंगे)
- संबंधित कार्य क्षेत्र की जानकारी रखने वाले विशेषज्ञ और कार्यरत लोग, विशेष आमंत्रित के रूप में प्रधानमंत्री द्वारा नामित किये जायेंगे।
पूर्णकालिक संगठनात्मक ढांचे में (प्रधानमंत्री अध्यक्ष होने के अलावा) निम्न होगें-
- उपाध्यक्षः प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त
- सदस्यः पूर्णकालिक
- अंशकालिक सदस्यः अग्रणी विश्वविद्यालय शोध संस्थानों और संबंधित संस्थानों से अधिकतम दो पदेन सदस्य, अंशकालिक सदस्य बारी के आधार पर होंगे।
- पदेन सदस्यः केन्द्रीय मंत्रिपरिषद् से अधिकतम 4 सदस्य प्रधानमंत्री द्वारा नामित होगें। यदि बारी के आधार को प्राथमिकता दी जाती है तो यह नियुक्ति विशिष्ट कार्यकाल के लिए होगी।
- मुख्य संचालन अधिकारीः भारत सरकार के सचिव स्तर के अधिकारी को निश्चित कार्यकाल के लिए प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त किया जायेगा।