भारतीय स्थापत्य कला

Print Friendly, PDF & Email

 

  • भारतीय स्थापत्य कला की उत्पत्ति हड़प्पा काल से मानी जाती है। 
  •  भारतीय स्थापत्य एवं वास्तुकला की सबसे ख़ास बात यह है कि इतने लंबे समय के बावजूद इसमें एक निरंतरता के दर्शन मिलते हैं।

सिंधु घाटी सभ्यता

  • सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता का काल 3500-1500 ई.पू. तक माना जाता है। इसकी गिनती विश्व की चार सबसे पुरानी सभ्यताओं में की जाती है।
  • हड़प्पा व मोहनजोदड़ो इस सभ्यता के प्रमुख नगर थे। 
  • यहां की इमारतें पक्की ईंटों की बनाई जाती थीं। यह एक ऐसी विशेषता है जो तत्कालीन किसी अन्य सभ्यता में नहीं पाई जाती थी।
  • मोहनजोदड़ो की सबसे बड़ी इमारत उसका स्नानागार था। घरों के निर्माण में पत्थर और लकड़ी का भी प्रयोग किया जाता था। 
  • मोहनजोदड़ो से मिली मातृ देवी, नाचती हुई लड़की की धातु की मूर्ति इत्यादि तत्कालीन उत्कृष्ट मूर्तिकला के अनुपम उदाहरण हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता में स्थित एक कुआँ और स्नानघर

मौर्यकालीन स्थापत्य कला

  •  राज्य की समृद्धि और मौर्य शासकों की प्रेरणा से कलाकृतियों को प्रोत्साहन मिला। 
  • इस युग में कला के दो रूप मिलते हैं। 
  1. राजरक्षकों के द्वारा निर्मित कला eg. अशोक स्तंभों
  2. लोककला  eg. परखम के यक्ष दीदारगंज की चामर ग्राहिणी और वेसनगर की यक्षिणी ।
अशोक स्तम्भ, वैशाली
  • मौर्य काल के दौैरान भारत में कई शहरों का विकास हुआ। मौर्यकाल भारतीय कलाओं के विकास के दृष्टिकोण से एक युगांतकारी युग था। 
  • लकड़ी का काफी प्रयोग
  • पत्थरों पर पॉलिश करने की कला
  • अशोक के समय से भवन निर्माण में पत्थरों का प्रयोग प्रारंभ हो गया था। 
  •  स्थापत्य के दृष्टिकोण से सांची, भारहुत, बोधगया, अमरावती और नागार्जुनकोंडा के स्तूप प्रसिद्ध हैं। 
  • अशोक ने 30 से 40 स्तम्भों का निर्माण कराया था। 
  • ग्रीक, फारसी और मिस्र संस्कृतियों का प्रभाव 

शुंग, कुषाण और सातवाहन वंश

  • 232 ई.पू. में अशोक की मृत्यु के थोड़े काल पश्चात ही मौर्य वंश का पतन हो गया। 
  • इसके बाद उत्तर भारत में शुंग और कुषाण वंशों और दक्षिण में सातवाहन वंश का शासनकाल आया। 
  • इस समय के कला स्मारक स्तूप, गुफा मंदिर (चैत्य), विहार, शैलकृत गुफाएं आदि हैं।
  •  भारत का प्रसिद्ध स्तूप का निर्माण शुंग काल के दौरान ही पूरा हुआ। इस काल में उड़ीसा (अब ओडिशा) में जैनियों ने गुफा मंदिरों का निर्माण कराया।  
  • अजंता की कुछ गुफाओं का निर्माण भी इसी काल के दौरान हुआ।
  •  इस काल के गुफा मंदिर काफी विशाल हैं। इसी काल के दौरान गांधार मूर्तिकला शैली का भी विकास हुआ। इस शैली का विकास कुषाणों के संरक्षण में हुआ।
  • इसी काल के दौरान विकसित एक अन्य शैली-मथुरा शैली गांधार से भिन्न थी।
  •  सातवाहन वंश ने गोली, जग्गिहपेटा, भट्टीप्रोलू, गंटासाला, नागार्जुनकोंडा और अमरावती में कई विशाल स्तूपों का निर्माण कराया।

गुप्तकालीन स्थापत्य कला

  • गुप्त काल में कला की विविध विधाओं जैसे वास्तु, स्थापत्य, चित्रकला, मृदभांड, कला आदि में अभूतपूर्ण प्रगति देखने को मिलती है। 
  • गुप्तकालीन स्थापत्य कला के सर्वोच्च उदाहरण तत्कालीन मंदिर थे। मंदिर निर्माण कला का जन्म यहीं से हुआ। 
  • गुप्तकालीन मंदिर छोटी-छोटी ईटों एवं पत्थरों से बनाये जाते थे। ‘भीतरगांव का मंदिर‘ ईटों से ही निर्मित है।
दशावतार विष्णु मन्दिर, देवगढ़, उत्तर प्रदेश

चोलकालीन स्थापत्य कला

  • चोलों ने द्रविड़ शैली को विकसित किया और उसको चरमोत्कर्ष पर पहुँचाया। 
  • राजाराज प्रथम द्वारा बनाया गया तंजौर का शिव मंदिर है, द्रविड़ शैली का उत्कृष्ट नमूना है।
  •  इस काल के दौरान मंदिर के अहाते में गोपुरम नामक विशाल प्रवेश द्वार का निर्माण होने लगा। 
  • प्रस्तर मूर्तियों का मानवीकरण चोल मूर्तिकारों की दक्षिण भारतीय कला को महान देन थी। 
  • चोल काँस्य मूर्तियों में नटराज की मूर्ति सर्वोपरि है।

सल्तनतकालीन स्थापत्य एवं वास्तुकला

क़ुतुब मीनार, दिल्ली
  • सल्तनत काल में भारतीय स्थापत्य कला के क्षेत्र में जिस शैली का विकास हुआ, वह भारतीय तथा इस्लामी शैलियों का सम्मिश्रण थी। इसलिए स्थापत्य कला की इस शैली को ‘इण्डो इस्लामिक’ शैली कहा गया। 
  • भारतीय एवं ईरानी शैलियों के मिश्रण का संकेत मिलता है।

इण्डों-इस्लामिक स्थापत्य कला शैली की विशेषताएँ निम्न प्रकार थीं-

  1. क़िला, मक़बरा, मस्जिद, महल एवं मीनारों में नुकीले मेहराबों-गुम्बदों तथा संकरी एवं ऊँची मीनारों का प्रयोग किया गया है।
  2. इस काल में मंदिरों को तोड़कर उनके मलबे पर बनी मस्जिद में एक नये ढंग से पूजा घर का निर्माण किया गया।
  3. सुल्तानों, अमीरों एवं सूफी सन्तों के स्मरण में मक़बरों के निर्माण की परम्परा की शुरुआत हुई।
  4. इमारतों में पहली बार वैज्ञानिक ढंग से मेहराब एवं गुम्बद का प्रयोग किया गया। 
  5. इमारतों की साज-सज्जा में जीवित वस्तुओं का चित्रिण निषिद्ध होने के कारण उन्हें सजाने में अनेक प्रकार के फूल-पत्तियाँ, ज्यामितीय एवं क़ुरान की आयतें खुदवायी जाती थीं

Read More- सल्तनतकालीन स्थापत्य एवं वास्तुकला

मुग़लकालीन स्थापत्य कला

  • दिल्ली सल्तनत काल में प्रचलित वास्तुकला की ‘भारतीय इस्लामी शैली’ का विकास मुग़ल काल में हुआ। 
  • मुग़लकालीन वास्तुकला में फ़ारस, तुर्की, मध्य एशिया, गुजरात, बंगाल, जौनपुर आदि स्थानों की शैलियों का अनोखा मिश्रण हुआ था। 
  •  मुग़लकालीन स्थापत्य कला के विकास और प्रगति की आरम्भिक क्रमबद्ध परिणति ‘फ़तेहपुर सीकरी’ आदि नगरों के निर्माण में और चरम परिणति शाहजहाँ के ‘शाहजहाँनाबाद’ नगर के निर्माण में दिखाई पड़ती है।
  • मुग़ल काल में वास्तुकला के क्षेत्र में पहली बार ‘आकार’ एवं डिजाइन की विविधता का प्रयोग तथा निर्माण की साम्रगी के रूप में पत्थर के अलावा पलस्तर एवं गचकारी का प्रयोग किया गया। सजावट के क्षेत्र में संगमरमर पर जवाहरात से की गयी जड़ावट का प्रयोग भी इस काल की एक विशेषता थी। 

मुग़लकालीन स्थापत्य एवं वास्तुकला

Source BharatDiscovery

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *