प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत

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भारतीय इतिहास जानने के स्रोत को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता हैं-

  1. साहित्यिक साक्ष्य
  2. विदेशी यात्रियों का विवरण
  3. पुरातत्त्व सम्बन्धी साक्ष्य

साहित्यिक साक्ष्य

साहित्यिक साक्ष्य के अन्तर्गत साहित्यिक ग्रन्थों से प्राप्त ऐतिहासिक वस्तुओं का अध्ययन किया जाता है। साहित्यिक साक्ष्य को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है- 

  1. धार्मिक साहित्य
  2. लौकिक साहित्य।

धार्मिक साहित्य

धार्मिक साहित्य के अन्तर्गत ब्राह्मण तथा ब्राह्मणेत्तर साहित्य की चर्चा की जाती है।

  • ब्राह्मण ग्रन्थों में – वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत, पुराण, स्मृति ग्रन्थ आते हैं।
  • ब्राह्मणेत्तर ग्रन्थों में जैन तथा बौद्ध ग्रन्थों को सम्मिलित किया जाता है।

ब्राह्मण धर्मग्रंथ

प्राचीन काल से ही भारत के धर्म प्रधान देश होने के कारण यहां प्रायः तीन धार्मिक धारायें- वैदिक, जैन एवं बौद्ध प्रवाहित हुईं। वैदिक धर्म ग्रन्थ को ब्राह्मण धर्म ग्रन्थ भी कहा जाता है।

ब्राह्मण धर्म – ग्रंथ के अन्तर्गत वेद, उपनिषद्, महाकाव्य तथा स्मृति ग्रंथों को शामिल किया जाता है।

वेद

  • वेद एक महत्त्वपूर्ण ब्राह्मण धर्म-ग्रंथ है। वेद शब्द का अर्थ ‘ज्ञान‘ महतज्ञान अर्थात ‘पवित्र एवं आध्यात्मिक ज्ञान‘ है।
  • यह शब्द संस्कृत के ‘विद्‘ धातु से बना है जिसका अर्थ है जानना।
  • वेदों के संकलनकर्ता 'कृष्ण द्वैपायन' थे। कृष्ण द्वैपायन को वेदों के पृथक्करण-व्यास के कारण 'वेदव्यास' की संज्ञा प्राप्त हुई।
  • वेदों से ही हमें आर्यो के विषय में प्रारम्भिक जानकारी मिलती है। कुछ लोग वेदों को अपौरुषेय अर्थात दैवकृत मानते हैं।

वेदों की कुल संख्या चार है-

  • ऋग्वेद- यह ऋचाओं का संग्रह है।
  • सामवेद- यह ऋचाओं का संग्रह है।
  • यजुर्वेद- इसमें यागानुष्ठान के लिए विनियोग वाक्यों का समावेश है।
  • अथर्ववेद- यह तंत्र-मंत्रों का संग्रह है।

उपनिषद

  • उपनिषदों की कुल संख्या 108 है।
  • भारत का प्रसिद्ध आदर्श वाक्य 'सत्यमेव जयते' मुण्डोपनिषद से लिया गया है।
  • उपनिषद गद्य और पद्य दोनों में हैं, जिसमें प्रश्न, माण्डूक्य, केन, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य, बृहदारण्यक और कौषीतकि उपनिषद गद्य में हैं तथा केन, ईश, कठ और श्वेताश्वतर उपनिषद पद्य में हैं।

वेदांग

  • वेदांग शब्द से अभिप्राय है- 'जिसके द्वारा किसी वस्तु के स्वरूप को समझने में सहायता मिले'।
  • वेदांगो की कुल संख्या 6 है, जो इस प्रकार है-
  1. शिक्षा
  2. कल्प
  3. व्याकरण
  4. निरूक्त 
  5. छन्द
  6. ज्योतिष

धर्मशास्त्र

ब्राह्मण ग्रन्थों में धर्मशास्त्र का महत्त्वपूर्ण स्थान है।

  • धर्मशास्त्र में चार साहित्य आते हैं-
  1. धर्म सूत्र
  2. स्मृति,
  3. टीका  
  4. निबन्ध।

स्मृतियाँ

  • स्मृतियों को 'धर्म शास्त्र' भी कहा जाता है।'स्मृतियों का उदय सूत्रों को बाद हुआ।
  • मनुष्य के पूरे जीवन से सम्बधित अनेक क्रिया-कलापों के बारे में असंख्य विधि-निषेधों की जानकारी इन स्मृतियों से मिलती है।
  • सम्भवतः मनुस्मृति (लगभग 200 ई.पूर्व. से 100 ई. मध्य) एवं याज्ञवल्क्य स्मृति सबसे प्राचीन हैं। उस समय के अन्य महत्त्वपूर्ण स्मृतिकार थे- नारद, पराशर, बृहस्पति, कात्यायन, गौतम, संवर्त, हरीत, अंगिरा आदि, जिनका समय सम्भवतः 100 ई. से लेकर 600 ई. तक था। मनुस्मृति से उस समय केभारत के बारे में राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक जानकारी मिलती है। 
  • नारद स्मृति से गुप्त वंश के संदर्भ में जानकारी मिलती है।
  • मेधातिथि, मारुचि, कुल्लूक भट्ट, गोविन्दराज आदि टीकाकारों ने 'मनुस्मृति' पर, जबकि विश्वरूप, अपरार्क, विज्ञानेश्वर आदि ने 'याज्ञवल्क्य स्मृति' पर भाष्य लिखे हैं।

महाकाव्य

  • 'रामायण' एवं 'महाभारत', भारत के दो सर्वाधिक प्राचीन महाकाव्य हैं।  
  • महाकाव्यों का रचनाकाल चौथी शती ई.पू. से चौथी शती ई. के मध्य माना गया है।

ब्राह्मणेत्तर ग्रन्थों

बौद्ध साहित्य

  • बौद्ध साहित्य को ‘त्रिपिटक‘ कहा जाता है। महात्मा बुद्ध के परिनिर्वाण के उपरान्त आयोजित विभिन्न बौद्ध संगीतियों में संकलित किये गये त्रिपिटक (संस्कृत त्रिपिटक) सम्भवतः सर्वाधिक प्राचीन धर्मग्रंथ हैं।
  • वुलर एवं रीज डेविड्ज महोदय ने ‘पिटक‘ का शाब्दिक अर्थ टोकरी बताया है।

​त्रिपिटक – 

  1. सुत्तपिटक, 
  2. विनयपिटक 
  3. अभिधम्मपिटक 

जैन साहित्य

  • ऐतिहसिक जानकारी हेतु जैन साहित्य भी बौद्ध साहित्य की ही तरह महत्त्वपूर्ण हैं।
  • अब तक उपलब्ध जैन साहित्य प्राकृत एवं संस्कृत भाषा में मिलतें है।
  • जैन साहित्य, जिसे ‘आगम‘ कहा जाता है, इनकी संख्या 12 बतायी जाती है।
  • आगे चलकर इनके 'उपांग' भी लिखे गये । आगमों के साथ-साथ जैन ग्रंथों में 10 प्रकीर्ण, 6 छंद सूत्र, एक नंदि सूत्र, एक अनुयोगद्वार एवं चार मूलसूत्र हैं।
  • इन आगम ग्रंथों की रचना सम्भवतः श्वेताम्बर सम्प्रदाय के आचार्यो द्वारा महावीर स्वामी की मृत्यु के बाद की गयी।

लौकिक साहित्य

  • लौकिक साहित्य के अन्तर्गत ऐतिहासिक ग्रन्थ, जीवनी, कल्पना-प्रधान तथा गल्प साहित्य का वर्णन किया जाता है।
  • लौकिक साहित्य के अन्तर्गत ऐतिहासिक एवं समसामयिक साहित्य आते हैं। 
  • इस प्रकार की कृतियों से तत्कालीन भारतीय समाज के राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास को जानने में काफ़ी मदद मिलती है।
  1. आचार्य चाणक्य – अर्थशास्त्र
  2. व्याकरण के पितामह आचार्य पाणिनि – अष्टाध्यायी
  3. विशाखदत्त – मुद्राराक्षस
  4. महर्षि पतंजलि – महाभाष्य,
  5. कालिदास – मालविकाग्निमित्रम्,
  6. बाणभट्ट – हर्षचरित,
  7. भास – स्वप्नवासवदत्तम,
  8. शूद्रक – मृच्छकटिकम,
  9. कल्हण – राजतरंगिणी 
  • दक्षिण भारत का प्रारम्भिक इतिहास ‘संगम साहित्य‘ से ज्ञात होता है।
  • सुदूर दक्षिण के पल्लव और चोल शासकों का इतिहास नन्दिकक्लम्बकम, कलिंगत्तुपर्णि, चोल चरित आदि से प्राप्त होता है।

विदेशी यात्रियों का विवरण

  • भारत पर प्राचीन समय से ही विदेशी आक्रमण होते रहे हैं। इन विदेशी आक्रमणों के कारण भारत की राजनीति और यहाँ के इतिहास में समय-समय पर काफ़ी महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं।
  • भले ही भारत पर यूनानियों का हमला रहा हो या मुसलमानों का या फिर अन्य जातियों का, अनेकों विदेशी यात्रियों ने यहाँ की धरती पर अपना पाँव रखा है। इनमें से अधिकांश यात्री आक्रमणकारी सेना के साथ भारत में आये। इन विदेशी यात्रियों के विवरण से भारतीय इतिहास की अमूल्य जानकारी हमें प्राप्त होती है।

विभाजन

विदेशी यात्रियों एवं लेखकों के विवरण से भारतीय इतिहास की जो जानकारी मिलती है, उसे तीन भागों में बाँटा जा सकता है-

  1. यूनानी-रोमन लेखक
  2. चीनी लेखक
  3. अरबी लेखक

यूनानी यात्री

  • टेसियस और हेरोडोटस यूनान और रोम के प्राचीन लेखकों में से हैं।
  • टेसियस ईरानी राजवैद्य था, उसने भारत के विषय में समस्त जानकारी ईरानी अधिकारियों से प्राप्त की थी।
  • हेरोडोटस, जिसे इतिहास का पिता कहा जाता है, ने 5वीं शताब्दी ई. पू. में 'हिस्टोरिका' नामक पुस्तक की रचना की थी, जिसमें भारत और फ़ारस के सम्बन्धों का वर्णन किया गया है।
  • 'नियार्कस', 'आनेसिक्रिटस' और 'अरिस्टोवुलास' ये सभी लेखक सिकन्दर के समकालीन थे। इन लेखकों द्वारा जो भी विवरण तत्कालीन भारतीय इतिहास से जुड़ा है, वह अपने में प्रमाणिक है।
  • सिकन्दर के बाद के लेखकों में महत्त्वपूर्ण था, मेगस्थनीज, जो यूनानी राजा सेल्यूकस का राजदूत था। वह चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में क़रीब 14 वर्षों तक रहा। उसने 'इण्डिका' नामक ग्रंथ की रचना की, जिसमें तत्कालीन मौर्य वंशीय समाज एवं संस्कृति का विवरण दिया गया था।
  • 'डाइमेकस', सीरियन नरेश 'अन्तियोकस' का राजदूत था, जो बिन्दुसार के राजदरबार में काफ़ी दिनों तक रहा। 'डायनिसियस' मिस्र नरेश 'टॉल्मी फिलाडेल्फस' के राजदूत के रूप में काफ़ी दिनों तक सम्राट अशोक के राज दरबार में रहा था।

चीनी यात्री

  • चीनी लेखकों के विवरण से भी भारतीय इतिहास पर प्रचुर प्रभाव पड़ता है। सभी चीनी लेखक यात्री बौद्ध मतानुयायी थे, और वे इस धर्म के विषय में कुछ जानकारी के लिए ही भारत आये थे।
  • चीनी बौद्ध यात्रियों में से प्रमुख थे- फाह्यान, ह्वेनसांग, इत्सिंग, मल्वानलिन, चाऊ-जू-कुआ आदि।

फाह्यान

  • फाह्यान का जन्म चीन के 'वु-वंग' नामक स्थान पर हुआ था। यह बौद्ध धर्म का अनुयायी था। उसने लगभग 399 ई. में  भारत यात्रा प्रारम्भ की।
  • फाह्यान की भारत यात्रा का उदेश्य बौद्ध हस्तलिपियों एवं बौद्ध स्मृतियों को खोजना था। इसीलिए फ़ाह्यान ने उन्ही स्थानों के भ्रमण को महत्त्व दिया, जो बौद्ध धर्म से सम्बन्धित थे।

ह्वेनसांग

  • ह्वेनसांग कन्नौज के राजा हर्षवर्धन (606-47ई.) के शासनकाल में भारत आया था।
  • इसने क़रीब 10 वर्षों तक भारत में भ्रमण किया। उसने 6 वर्षों तक नालन्दा विश्वविद्यालय में अध्ययन किया। उ
  • सकी भारत यात्रा का वृतान्त 'सी-यू-की' नामक ग्रंथ से जाना जाता है, जिसमें लगभग 138 देशों के यात्रा विवरण का ज़िक्र मिलता है।
  • चीनी यात्रियों में सर्वाधिक महत्व ह्वेनसांग का ही है। उसे 'प्रिंस ऑफ़ पिलग्रिम्स' अर्थात् 'यात्रियों का राजकुमार' कहा जाता है।

इत्सिंग

  • इत्सिंग 613-715 ई. के समय भारत आया था।
  • उसने नालन्दा एवं विक्रमशिला विश्वविद्यालय तथा उस समय के भारत पर प्रकाश डाला है।
  • 'मत्वालिन' ने हर्ष के पूर्व अभियान एवं 'चाऊ-जू-कुआ' ने चोल कालीन इतिहास पर प्रकाश डाला है।

अरबी यात्री

  • पूर्व मध्यकालीन भारत के समाज और संस्कृति के विषयों में हमें सर्वप्रथम अरब व्यापारियों एवं लेखकों से विवरण प्राप्त होता है।
  • इन व्यापारियों और लेखकों में मुख्य हैं- अलबेरूनी,सुलेमान, फ़रिश्ता और अलमसूदी।

फ़रिश्ता

  • फ़रिश्ता एक प्रसिद्ध इतिहासकार था, जिसने फ़ारसी में इतिहास लिखा है।
  • वह युवावस्था में अपने पिता के साथ अहमदाबाद आया और वहाँ 1589 ई. तक रहा।
  • इसके बाद वह बीजापुर चला गया, जहाँ उसने सुल्तान इब्राहीम आदिलशाह द्वितीय का संरक्षण प्राप्त किया था।

अलबेरूनी

  • अलबेरूनी जो 'अबूरिहान' नाम से भी जाना जाता था, 973 ई. में ख्वारिज्म (खीवा) में पैदा हुआ था।
  • 1017 ई. में ख्वारिज्म को महमूद ग़ज़नवी द्वारा जीते जाने पर अलबेरूनी को उसने राज्य ज्योतिषी के पद पर नियुक्त किया।
  • बाद में महमूद के साथ अलबेरूनी भारत आया।
  • इसने अपनी पुस्तक 'तहकीक-ए-हिन्द' अर्थात 'किताबुल हिंद' में राजपूत कालीन समाज, धर्म, रीतिरिवाज आदि पर सुन्दर प्रकाश डाला है।

सुलेमान

  • 9 वी. शताब्दी में भारत आने वाले अरबी यात्री सुलेमान प्रतिहार एवं पाल शासकों के तत्कालीन आर्थिक, राजनीतिक एवं सामाजिक दशा का वर्णन करता है।

अलमसूदी

  • 915-16 ई. में भारत की यात्रा करने वाला बगदाद का यह यात्री अलमसूदी राष्ट्रकूट एवं प्रतिहार शासकों के विषय में जानकारी देता हैं।

तबरी

  • 'तबरी' अथवा 'टबरी' (अबू जाफ़र मुहम्मद इब्न, जरी उत तबरी) एक महान अरब इतिहासकार और इस्लाम धर्म शास्त्री था। 

उपर्युक्त विदेशी यात्रियों के विवरण के अतिरिक्त कुछ फ़ारसी लेखकों के विवरण भी प्राप्त होते हैं, जिनसे भारतीय इतिहास के अध्ययन में काफ़ी सहायता मिलती है। इसमें महत्त्वपूर्ण हैं-'फ़िरदौसी' (940-1020ई.) कृत 'शाहनामा'। 'रशदुद्वीन' कृत 'जमीएत-अल-तवारीख़', 'अली अहमद' कृत 'चाचनामा', 'मिनहाज-उल-सिराज' कृत 'तबकात-ए-नासिरी', 'जियाउद्दीन बरनी' कृत 'तारीख़-ए-फ़िरोजशाही' एवं 'अबुल फ़ज़ल' कृत 'अकबरनामा' आदि।

अन्य विदेशी यात्री

कुछ अन्य विदेशी यात्रियों का विवरण इस प्रकार से है-

इब्न बतूता

  • इब्न बतूता एक विद्वान अफ़्रीकी यात्री था, जिसका जन्म 24 फ़रवरी 1304 ई. को उत्तर अफ्रीका के मोरक्को प्रदेश के प्रसिद्ध नगर 'तांजियर' में हुआ था। 
  • इब्न बतूता 1333 ई. में सुल्तान मुहम्मद तुग़लक़ के राज्यकाल में भारत आया। सुल्तान ने इसका स्वागत किया और उसे दिल्ली का प्रधान क़ाज़ी नियुक्त कर दिया।

बर्नियर

  • बर्नियर का पूरा नाम 'फ़्रेंसिस बर्नियर' था। ये एक फ़्राँसीसी विद्वान डॉक्टर थे, जो सत्रहवीं सदी में फ्राँस से भारत आए थे।
  • बर्नियर के आगमन के समय मुग़ल बादशाह शाहजहाँ अपने जीवन के अन्तिम चरण में थे और उनके चारों पुत्र भावी बादशाह होने के मंसूबे बाँधने और उसके लिए उद्योग करने में जुटे हुए थे।
  • बर्नियर ने मुग़ल राज्य में आठ वर्षों तक नौकरी की। उस समय के युद्ध की कई प्रधान घटनाएँ बर्नियर ने स्वयं देखी थीं।

पुरातत्त्व सम्बन्धी साक्ष्य

  • पुरातात्विक स्त्रोतों के अंतर्गत उत्खनन (खुदाई) में प्राप्त वस्तुएं आती हैं . इनमें अभिलेख , मुद्राएँ और प्राचीन खँडहर इत्यादि महत्वपूर्ण हैं .
  • इसके अतिरिक्त जीवाश्मों के अध्ययन से किसी काल के वासियों के बारे में प्रामाणिक जानकारी प्राप्त होती है 

 

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